अधिकांश लोग परिश्रम, उधम, प्रयास और अभ्यास छोड़कर चमत्कार की आशा मे बैठे रहते है.|आध्यात्मिक क्षेत्र मे यह अधिक देखने को मिलता है| वे कोई धार्मिक कार्य या यज्ञ - अनुष्ठान भी इसलिए करते दिखाई देते है की इससे कोई अदृश्य सत्ता उनकी सभी अभिलाषाओ की पूर्ति कर देगी|
किसी साधु या महात्मा के पास ढेरों लोग इसी आशा मे जाते है की उनके पास कोई जादुई छड़ी होगी, जिसे घुमाने से उनकी सभी आकांक्षाए क्षण भर मे पूरी हो जाएंगी, लेकिन जब ऐसा कुछ नहीं होता, तो उनका मन निराश हो जाता है. बहुतेरे साधु - संत का भेष बनाकर लोगो की इस कमजोरी का भरपूर दोहन करते है| इसका मतलब यह नहीं की धार्मिक यज्ञ - अनुष्ठान नहीं किए जाए. इससे हमें अच्छे संस्कार मिलते है और हमारा आत्मबल भी मजबूत बनता है, जो जीवन - डगर को सुगम बनाते है|
सच्चे साधु - संत कभी चमत्कार की आस नहीं जगाते| वे लोगो को ग्रंथो का अध्ययन करने, महान पुरुषो से प्रेरणा लेने, सुनियोजित प्रयास और परिश्रम करने के लिए प्रेरित करते है| किसी से मिलते ही यदि आपको लगे की वह जादुई ढंग से मंजिल पर पहुंचाने, पल भर मे सब कुछ भगवान से दिला देने और भगवान को दिखाने का आश्वासन दे रहा है, तो सतर्क हो जाने की जरुरत है की कही वह ठग तो नहीं रहा? यदि चमत्कार से सब कुछ मिल ही जाता, तो वह खुद न हासिल कर लेता?
भगवान श्री राम के 14 वर्ष के त्यागपूर्ण जीवन को सब जानते है, जबकी 11 हजार वर्ष उन्होंने अयोध्या मे राज किया, उसे कम लोग जानते है| ईश्वर का चमत्कार ही देखना है, तो सम्पूर्ण जगत से पहले प्रतेक व्यक्ति को अपना ही शरीर देखना चाहिए की अनेकानेक छिद्र होने के बावजूद प्राणवायु और 71 प्रतिशत जल इसी शरीर मे लम्बे समय तक ठहरे रहते है| इसीलिए किसी के बहकावे मे नहीं आना चाहिए| हमें हर पल सावधान, सजग और सतर्क रहना चाहिए|